Sunday, April 11, 2010

नारी

घुंगरू बाँध आती हैं, और छमछम नाच दिखाती हैं,
तरह तरह के वेष बदल, वो कैसा स्वांग रचाती हैं...

लक्ष्मी का ये रूप, जब बिटियाँ बनकर आती है,
अपनी नन्ही किलकारी से, हर बगियाँ फूल खिलाती है...
पापा-पापा कहती वो, जब दौड़ी दौड़ी आती हैं,
अपनी मीठी बातों से, हर दुःख तकलीफ़ भगाती हैं...

पैरों में पायलिया डाल और योवन का श्रृंगार लिए....
सखियों के संग जब जाती है....
जाने कितने दिल तोड़कर, सडको पर लाश बिछाती हैं....

लाल रेशम की चुनर ओढ़, दुल्हन का रूप सजाती हैं,
 हाथों में मेहँदी के रंग, और आँखों से आंसू  बरसाती है....

अपना घर सब छोड़कर, पति के संग वो जाती हैं,
एक इंसान को भगवान् मान, चरणों में शीश नवाती है.....
सास-ससुर की सेवा कर, एक बहु का फर्ज़ निभाती हैं,
ननद-देवर को प्यार दे, उनकी भाभी माँ बन जाती है.....

फिर गौरी का रूप ले, श्रृष्टि चक्र चलाती हैं.
नौ महीने तक गर्भ में, एक नन्हा फूल खिलाती हैं....
फिर ममता की देवी बन, उसकी माँ कहलाती हैं,
एक मांस के ढ़ेर को, वो इंसान बनाती हैं.....

अब सास का रूप ले, एक प्यारी परी घर लाती हैं,
पराई बिटियाँ को अपनाकर, सारा दुलार लुटाती हैं....
और अंतिम यात्रा कर, मृत्यु सैयां पे जब जाती हैं,
शक्ति का ही रूप ये, और शक्ति में ही मिल जाती हैं....

कभी फातिमा कभी मरियम, कभी गौरी या गंगा बन.....
इस धरती पे ये आती हैं.....
और अपने आने जाने में ही.....
ये संसार बना जाती हैं.....!!