Wednesday, December 29, 2010

एक कागज़ की कश्ती थी.... एक रेत का किनारा हैं..
आँखों में कुछ सपने थे, अब यादों को फ़साना हैं....
जिद थी सब कुछ पाने की तब....अब सब खो जाने का डर लगता हैं...
जीते जीते ही कभी मर जाने का मन करता हैं....

जहां खेलें.. दो बातें की.... वो यार मेरे बन जाते थे...
बातों बातों में ही सारा जहां अपना कर जाते थे...
अब संग रहते है संग खाते है...संग दुनिया-जहान घूम आते है...
पर सच कहता हूँ ....उनको "अपना" कहने में डर लगता हैं...

एक ख़ुशी थी दिल में तब...जो अंग-अंग झलकती थी...
एक हंसी है चेहरे पर अब... जो आँखों में भी नहीं दिखती है...
बड़े होने की चाहत थी मेरी... अब पीछे मुड जब देखता हूँ....
वो अंगूठा दिखाकर चिढ़ाता....शायद बचपन मेरा हैं... 

Friday, May 21, 2010

SENIORS

वो LC की राहें अब सूनी लगेंगी,
वो घाट पे रातें ना काटें कटेंगी,
अब किसको हम SENIORS कहके बुलाएँगे,
और फिर सब मिलके किसका  मज़ाक उड़ायेंगे, 

अब किसके संग हम CHOWK जायेंगे,
किसके पैसे से हम TOAST NAMAK MAKKHAN खायेंगे,
किसके संग अब हर चीज़ में बनारसी FEEL लायेंगे,
उनकी CHAUCHAK बातों के बिना, कैसे दिल बहलाएँगे,

अब किसको मैं अपना बापू बुलाऊंगा,
और किसकी हर बात में अपनी टांग अड़ाउंगा,
हर छोटी बात पे किस्से गुस्साता जाऊंगा,
किसके संग अब रात ढाई बजे लंका जाऊंगा... :(

"बच्चे....." कहके अब कौन मुझे बुलाएगा,
मेरी हर परेशानी में, कौन मुझे समझाएगा...
हफ्ते-दस दिन न दिखने पे, किसको गालियाँ सुनाऊंगा,
अब हर महीने किस से TREAT खाऊंगा,
 और किसकी आँखों में वो अपनापन और प्यार पाउँगा... :(

किस से इतने कम समय में खुद से जुड़ा पाउँगा,
उस सबसे senior friend को कैसे भुला पाउँगा...
हर समय " Ramada में Treat " किसके सामने गाऊंगा,
कुछ भी हो दोस्त, तुमसे मिलने IIM लखनऊ जरूर आऊंगा....
 

Sunday, April 11, 2010

नारी

घुंगरू बाँध आती हैं, और छमछम नाच दिखाती हैं,
तरह तरह के वेष बदल, वो कैसा स्वांग रचाती हैं...

लक्ष्मी का ये रूप, जब बिटियाँ बनकर आती है,
अपनी नन्ही किलकारी से, हर बगियाँ फूल खिलाती है...
पापा-पापा कहती वो, जब दौड़ी दौड़ी आती हैं,
अपनी मीठी बातों से, हर दुःख तकलीफ़ भगाती हैं...

पैरों में पायलिया डाल और योवन का श्रृंगार लिए....
सखियों के संग जब जाती है....
जाने कितने दिल तोड़कर, सडको पर लाश बिछाती हैं....

लाल रेशम की चुनर ओढ़, दुल्हन का रूप सजाती हैं,
 हाथों में मेहँदी के रंग, और आँखों से आंसू  बरसाती है....

अपना घर सब छोड़कर, पति के संग वो जाती हैं,
एक इंसान को भगवान् मान, चरणों में शीश नवाती है.....
सास-ससुर की सेवा कर, एक बहु का फर्ज़ निभाती हैं,
ननद-देवर को प्यार दे, उनकी भाभी माँ बन जाती है.....

फिर गौरी का रूप ले, श्रृष्टि चक्र चलाती हैं.
नौ महीने तक गर्भ में, एक नन्हा फूल खिलाती हैं....
फिर ममता की देवी बन, उसकी माँ कहलाती हैं,
एक मांस के ढ़ेर को, वो इंसान बनाती हैं.....

अब सास का रूप ले, एक प्यारी परी घर लाती हैं,
पराई बिटियाँ को अपनाकर, सारा दुलार लुटाती हैं....
और अंतिम यात्रा कर, मृत्यु सैयां पे जब जाती हैं,
शक्ति का ही रूप ये, और शक्ति में ही मिल जाती हैं....

कभी फातिमा कभी मरियम, कभी गौरी या गंगा बन.....
इस धरती पे ये आती हैं.....
और अपने आने जाने में ही.....
ये संसार बना जाती हैं.....!!

Monday, March 22, 2010

मैं अछूत हूँ!!!!!

कैसी ये उदासी छाई हैं, क्यूँ सपनो में भी रूश्वाई हैं,

क्यूँ अपने मुझे अब अपने लगते नहीं, क्यूँ आँखों में अब सपने सजते नहीं,

जहाँ देखूं हर तरफ धोखा ही धोखा हैं, रिश्तों का ये खेल भी अनोखा हैं,

लगता मुझको हर कोई यहाँ पराया हैं, इस जहान में चलती सिर्फ माया ही माया हैं,

फूल से रस लेना तो भवरें को भी सिखाया हैं, पर फूल की तरह गुथ जाना भी किसीको आया हैं,

माली भी हरश्रृंगार कर फूल को बनाता हैं, और खुद ही तोड़कर उसे श्रीचरणों में चढ़ा आता हैं,

फूल से किसी ने पुछा होता की वो क्या चाहता हैं, तो शायद श्रीचरणों से पहले वो माली के चरणों में ही मिट जाता ,

ये फूल पूछता आज भी एक सवाल हैं, क्यूँ अपने माली के लिए ही वो अछूत नाग़वार हैं.....

मैं अछूत हूँ मैं अछूत हूँ, बस यही कहता वो....बार बार......हर बार हैं........!!!!!!!