Monday, March 22, 2010

मैं अछूत हूँ!!!!!

कैसी ये उदासी छाई हैं, क्यूँ सपनो में भी रूश्वाई हैं,

क्यूँ अपने मुझे अब अपने लगते नहीं, क्यूँ आँखों में अब सपने सजते नहीं,

जहाँ देखूं हर तरफ धोखा ही धोखा हैं, रिश्तों का ये खेल भी अनोखा हैं,

लगता मुझको हर कोई यहाँ पराया हैं, इस जहान में चलती सिर्फ माया ही माया हैं,

फूल से रस लेना तो भवरें को भी सिखाया हैं, पर फूल की तरह गुथ जाना भी किसीको आया हैं,

माली भी हरश्रृंगार कर फूल को बनाता हैं, और खुद ही तोड़कर उसे श्रीचरणों में चढ़ा आता हैं,

फूल से किसी ने पुछा होता की वो क्या चाहता हैं, तो शायद श्रीचरणों से पहले वो माली के चरणों में ही मिट जाता ,

ये फूल पूछता आज भी एक सवाल हैं, क्यूँ अपने माली के लिए ही वो अछूत नाग़वार हैं.....

मैं अछूत हूँ मैं अछूत हूँ, बस यही कहता वो....बार बार......हर बार हैं........!!!!!!!

1 comment:

  1. padh k lag raha hain k dimag me bahut kuchh tha likhane ko...kafi achi hain..khas kar last k 5 lines!!:-)

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